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शराब

ख़ामोश दिलों को पैमाना बना रही है शराब,

मैख़ाने को मैख़ाना बना रही है शराब।

क्या बिसात मेरी की कह दू कता कोई,

ब-ख़ुदा मुझे शायर बना रही है शराब।

रज़ा है उतार दूँ खंजर तेरे सीने में,

यूँ समझ तुझे मुझसे बचा रही है शराब।

ये होठों से गुज़र कर दिल मे उतर गई,

आशिकों को दीवाना बना रही है शराब।

शायद कल ही तो था भूला तुझे ऐ मोहोब्बत,

आज फिर तेरी याद दिला रही है शराब।

छोड़ दी है।

मियां सब चीजें खराब छोड़ दी हैं,अब हमने सस्ती शराब छोड़ दी है।


अब किसी और की बेग़म को तो भगाएँ कैसे,हमने सब ख्वाइशें अजायब छोड़ दी हैं।

होगा वो शूर ये मान लिया हमने मगर,हमने तो बीच समंदर में नाव छोड़ दी है।

दीवार -ओ-दर से दस्तक अब भी आती है,मगर मैंने तो कब से खुली किवाड़ छोड़ दी है।

©harsh_parashar

भीड़ मे अब लोग मुझे आजमाया नही करते…

भीड़ मे अब लोग मुझे आजमाया नही करते,

 मुझे तेरा कोई भी किस्सा सुनाया नही करते !!

जाने क्यों इस शहर के लोग अजनबी होने लगे

इस तरह तो अपनो को पराया नही करते !!

तुझे इश्क़ नही मुझसे न ही अदावत कोई है, 

दिल ऐसे कोई दुश्मन का जलाया नही करते !!

यूं तो हर गली के कुछ दिल जीत  रखे है मैंने,

जाने क्यों बस तेरे दिल मे ही समाया नही करते !

अब ये इम्तिहाँ है तो इसे इम्तिहाँ ही समझूंगा मैं

दीवाने दिल के टूट जाने से डर जाया नही करते  !!

सुना है इक शहर के लोग साथ चलते है कभी कभी

मैंने पुकारा तो क्यों मेरे साथ लोग आया नही करते।!

हर मुलाकात पर न आने को बहाना ढूंढते हो…

हर मुलाकात पर न आने को बहाना ढूंढते हो,

तुम शराब तो नही पीते मगर पैमाना ढूंढते हो।

अब किस्से कहाँ रहे वो पहले जैसे,

अब कहाँ तुम वो जमाना ढूंढते हो।

तुम भी कहाँ भूल पाये हो मुझे,

तुम अब भी मेरे जैसा दीवाना ढूंढते हो।

जिस शहर जिन गलियों में बातें हो हमारी,

आज भी तुम वहीं अपना ठिकाना ढूंढते हो।

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